Monday 19 April 2021

शबरी बोली - यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो राम तुम यहाँ कहाँ से आते

राम गंभीर हुए

कहा, भ्रम में न पड़ो माता

राम क्या रावण का वध करने आया है ?

अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से वाण चला भी कर सकता है

राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है माता, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था

जब कोई कपटी भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं, यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है

राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाय तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है

राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतिक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं

शबरी एकटक राम को निहारती रहीं

राम ने फिर कहा- राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता

राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिए आदर्श की स्थापना के लिए

राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है

राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय और खर-दूषणो का घमंड तोड़ा जाये

और राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं

शबरी की आँखों में जल भर आया था

उसने बात बदलकर कहा - कन्द खाओगे राम ?

राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं माता"

शबरी अपनी कुटिया से झपोली में कन्द ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा - मीठे हैं न प्रभु ?

यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ माता

बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है

शबरी मुस्कुराईं, बोली - "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो राम, गुरुदेव ने ठीक कहा था"

🌺सियापति रामचन्द्र की जय🌺

Wednesday 7 April 2021

सहजन(मुनगा)

दुनिया का सबसे ताकतवर पोषण पूरक आहार है- सहजन (मुनगा)। इसकी जड़ से लेकर फूल, पत्ती, फल्ली, तना, गोंद हर चीज उपयोगी होती है। 
           आयुर्वेद में सहजन से तीन सौ रोगों का उपचार संभव है। सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना :- विटामिन सी- संतरे से सात गुना अधिक। विटामिन ए- गाजर से चार गुना अधिक। कैलशियम- दूध से चार गुना अधिक। पोटेशियम- केले से तीन गुना अधिक। प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना अधिक। 
            स्वास्थ्य के हिसाब से इसकी फली, हरी और सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी-काम्प्लेक्स प्रचुर मात्रा में पाई जाते हैं। इनका सेवन कर कई बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सकता है, इसका बॉटेनिकल नाम ' मोरिगा ओलिफेरा ' है। हिंदी में इसे सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा नाम से भी जानते हैं, जो लोग इसके बारे में जानते हैं, वे इसका सेवन जरूर करते हैं। 
          सहजन का फूल पेट और कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, साइटिका, गठिया आदि में उपयोगी है। इसकी छाल का सेवन साइटिका, गठिया, लीवर में लाभकारी होता है। सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात और कफ रोग खत्म हो जाते हैं। 
          सहजन की पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, साइटिका, पक्षाघात, वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है। साइटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखाता है। मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं और मोच के स्थान पर लगाने से जल्दी ही लाभ मिलने लगता है।
            सहजन के फली की सब्जी खाने से पुराने गठिया, जोड़ों के दर्द, वायु संचय, वात रोगों में लाभ होता है। इसके ताजे पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है साथ ही इसकी सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है। इसकी जड़ की छाल का काढ़ा सेंधा नमक और हींग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है। 
          सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उल्टी-दस्त भी रोकता है। ब्लड प्रेशर और मोटापा कम करने में भी कारगर सहजन का रस सुबह-शाम पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है। इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे-धीरे कम होने लगता है। इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द में आराम मिलता है। 
            सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होता है, इसके अलावा इसकी जड़ के काढ़े को सेंधा नमक और हींग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सूजन ठीक होते हैं। 
          सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीसकर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लोरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है, बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है।
            कैंसर तथा शरीर के किसी हिस्से में बनी गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ों में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में भी लाभकारी है |
            सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द तथा दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से वायरस से होने वाले रोग, जैसे चेचक आदि के होने का खतरा टल जाता है। 
           सहजन में अधिक मात्रा में ओलिक एसिड होता है, जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिए अति आवश्यक है। सहजन में विटामिन-सी की मात्रा बहुत होती है। यह शरीर के कई रोगों से लड़ता है। यदि सर्दी की वजह से नाक-कान बंद हो चुके हैं तो, सहजन को पानी में उबालकर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होती है। सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है, इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है, गर्भवती महिला को इसकी पत्तियों का रस देने से डिलीवरी में आसानी होती है।
           सहजन के फली की हरी सब्जी को खाने से बुढ़ापा दूर रहता है इससे आंखों की रोशनी भी अच्छी होती है। सहजन को सूप के रूप में भी पी सकते हैं,  इससे शरीर का खून साफ होता है। 
            सहजन का सूप पीना सबसे अधिक फायदेमंद होता है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। विटामिन सी के अलावा यह बीटा कैरोटीन, प्रोटीन और कई प्रकार के लवणों से भरपूर होता है, यह मैगनीज, मैग्नीशियम, पोटैशियम और फाइबर से भरपूर होते हैं। यह सभी तत्व शरीर के पूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। 
            कैसे बनाएं सहजन का सूप? सहजन की फली को कई छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं। दो कप पानी लेकर इसे धीमी आंच पर उबलने के लिए रख देते हैं, जब पानी उबलने लगे तो इसमें कटे हुए सहजन की फली के टुकड़े डाल देते हैं, इसमें सहजन की पत्त‍ियां भी मिलाई जा सकती हैं, जब पानी आधा बचे तो सहजन की फलियों के बीच का गूदा निकालकर ऊपरी हिस्सा अलग कर लेते हैं, इसमें थोड़ा सा नमक और काली मिर्च मिलाकर पीना चाहिए। 
           १. सहजन के सूप के नियमित सेवन से सेक्सुअल हेल्थ बेहतर होती है. सहजन महिला और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फायदेमंद है। 
           २. सहजन में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाया जाता है जो कई तरह के संक्रमण से सुरक्षित रखने में मददगार है. इसके अलावा इसमें मौजूद विटामिन सी इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने का काम करता है। 
          ३. सहजन का सूप पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाने का काम करता है, इसमें मौजूद फाइबर्स कब्ज की समस्या नहीं होने देते हैं। 
          ४. अस्थमा की शिकायत होने पर भी सहजन का सूप पीना फायदेमंद होता है. सर्दी-खांसी और बलगम से छुटकारा पाने के लिए इसका इस्तेमाल घरेलू औषधि के रूप में किया जाता है। 
          ५. सहजन का सूप खून की सफाई करने में भी मददगार है, खून साफ होने की वजह से चेहरे पर भी निखार आता है। 
          ६. डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए भी सहजन के सेवन की सलाह दी जाती है।
प्रस्तुति - जितेन्द्र रघुवंशी, प्रज्ञाकुंज, हरिद्वार

Friday 12 June 2020

Dignity of Labour

*अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची!*
*सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा,* *मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे!* *इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी! लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे! उन्होंने कहा कि, मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे! सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है! अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूँ! मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है!*
*सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है और उसी भाषण से एक थ्योरी निकली Dignity of Labour (श्रम का महत्व) और इसका ये असर हुआ की जितने भी कामगार थे उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया जैसे कि - कोब्लर, शूमेंकर, बुचर, टेलर, स्मिथ, कारपेंटर, पॉटर आदि।* 
*अमरिका में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है इसीलिए वो दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति है।*
   *वहीं भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है वो छोटी जाति का है नीच है। यहाँ जो बिलकुल भी श्रम नहीं करता वो ऊंचा है।*
  *जो यहाँ सफाई करता है, उसे हेय (नीच) समझते हैं और जो गंदगी करता है उसे ऊँचा समझते हैं।*
*ऐसी गलत मानसिकता के साथ हम दुनिया के नंबर एक देश बनने का सपना सिर्फ देख सकते है, लेकिन उसे पूरा नहीं कर सकते। जब तक कि हम श्रम को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे।जातिवाद और ऊँच नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र निर्माण के लिए बहुत बड़ी बाधा है।🙏🙏🙏

॥सर्वे भवन्तु सुखिनः सवेँसनतु निरामया:॥

जब किसी की मृत्यु होती थी तब भी 13 दिन तक उस घर में कोई प्रवेश नहीं करता था। यही Isolation period था। क्योंकि मृत्यु या तो किसी बीमारी से होती है या वृद्धावस्था के कारण जिसमें शरीर तमाम रोगों का घर होता है। यह रोग हर जगह न फैले इसलिए 14 दिन का quarantine period बनाया गया ।

जो शव को अग्नि देता था, उसको घर वाले तक नहीं छू सकते थे 13 दिन तक। उसका खाना पीना, भोजन, बिस्तर, कपड़े सब अलग कर दिए जाते थे। तेरहवें दिन शुद्धिकरण के पश्चात, सिर के बाल हटवाकर ही पूरा परिवार शुद्ध होता था ।

तब भी आप बहुत हँसे थे।  bloody indians कहकर मजाक बनाया था !!!

जब किसी रजस्वला स्त्री को 4 दिन isolation में रखा जाता है ताकि वह भी बीमारियों से बची रहें और आप भी बचे रहें तब भी आपने पानी पी पी कर गालियाँ दी। और नारीवादियों को कौन कहे, वो तो दिमागी तौर से अलग होती हैं, उन्होंने जो ज़हर बोया कि उसकी कीमत आज सभी स्त्रियाँ तमाम तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर चुका रही हैं।

जब किसी के शव यात्रा से लोग आते हैं घर में प्रवेश नहीं मिलता है और बाहर ही हाथ पैर धोकर स्नान करके, कपड़े वहीं निकालकर घर में आया जाता है,  इसका भी खूब मजाक उड़ाया आपने ।

आज भी गांवों में एक परंपरा है कि बाहर से कोई भी आता है तो उसके पैर धुलवायें जाते हैं। जब कोई भी बहूं , लड़की या कोई भी दूर से आता है तो वह तब तक प्रवेश नहीं पाता जब तक घर की बड़ी बूढ़ी लोटे में जल लेकर, हल्दी डालकर उस पर छिड़काव करके वही जल बहाती नहीं हों, तब तक। खूब मजाक बनाया था न ?

इन्हीं सवर्णों को और ब्राह्मणों को अपमानित किया था जब ये गलत और गंदे कार्य करने वाले, माँस और चमड़ों का कार्य करने वाले लोगों को तब तक नहीं छूते थे जब क वह स्नान से शुद्ध न हो जाय। ये वही लोग थे जो जानवर पालते थे जैसे सुअर, भेड़, बकरी, मुर्गा, कुत्ता इत्यादि जो अनगिनत बीमारियाँ अपने साथ लाते थे।
ये लोग जल्दी उनके हाथ का छुआ जल या भोजन नहीं ग्रहण करते थे तब बड़ा हो हल्ला आपने मचाया और इन लोगों को इतनी गालियाँ दी कि इन्हें अपने आप से घृणा होने लगी।

यही वह गंदे कार्य करने वाले लोग थे जो प्लेग, TB , चिकन पॉक्स, छोटी माता, बड़ी माता, जैसी जानलेवा बीमारियों के संवाहक थे और जब आपको बोला गया कि बीमारियों से बचने के लिए आप इनसे दूर रहें तो आपने गालियों का मटका इनके सिर पर फोड़ दिया और इनको इतना अपमानित किया कि इन्होंने बोलना छोड़ दिया और समझाना छोड़ दिया।

आज जब आपको किसी को छूने से मना किया जा रहा है तो आप इसे ही विज्ञान बोलकर अपना रहे हैं । Quarantine किया जा रहा है तो आप खुश होकर इसको अपना रहे हैं ।
पर शास्त्रों के उन्हीं वचनों को तो ब्राह्मणवाद/मनुवाद कहकर आपने गरियाया था और अपमानित किया था।

आज यह उसी का परिणति है कि आज पूरा विश्व इससे जूझ रहा है।

याद करिये पहले जब आप बाहर निकलते थे तो आप की माँ आपको जेब में कपूर या हल्दी की गाँठ इत्यादि देती थी रखने को।
यह सब कीटाणु रोधी होते हैं।
शरीर पर कपूर पानी का लेप करते थे ताकि सुगन्धित भी रहें और रोगाणुओं से भी बचे रहें।
लेकिन सब आपने भुला दिया !

आपको तो अपने शास्त्रों को गाली देने में और ब्राह्मणों को अपमानित करने में, उनको भगाने में जो आनंद आता है शायद वह परमानंद आपको कहीं नहीं मिलता।

अरे समझो !! अपने शास्त्रों के level के जिस दिन तुम हो जाओगे न तो यह देश विश्व गुरु कहलायेगा।

तुम ऐसे अपने शास्त्रों पर ऊँगली उठाते हो जैसे कोई मूर्ख व्यक्ति के मूर्ख 7 वर्ष का बेटा ISRO के कार्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाए।

*अब भी कहता हूँ अपने शास्त्रों का सम्मान करना सीखो। उनको मानो। बुद्धि में शास्त्रों की अगर कोई बात नहीं घुस रही है तो समझ जाओ आपकी बुद्धि का स्तर उतना नहीं हुआ है। उस व्यक्ति के पास जाओ जो तुम्हे शास्त्रों की बातों को सही ढंग से समझा सके*।
*लेकिन गाली मत दो, उसको जलाने  का दुष्कृत्य मत करो।*

जिसने विज्ञान का गहन अध्ययन किया होगा , वह शास्त्र वेद पुराण इत्यादि की बातों को बड़े ही आराम से समझ सकता है, correlate कर सकता है और समझा भी सकता है।

Note it down !! Mark my words again !! 

पता नहीं कि आप इसे पढ़ेंगे या नहीं लेकिन मेरा काम है आप लोगों को जगाना, जिसको जगना है या लाभ लेना है वह पढ़ लेगा।
यह भी अनुरोध है कि  आप भले ही किसी भी जाति/समाज से हों, धर्म के नियमों का पालन कीजिये इससे इहलोक और परलोक दोनों सुधरेगा..

*॥सर्वे भवन्तु सुखिनः सवेँसनतु निरामया:॥*

भारतीय दर्शन और गौरव को सादर प्रणाम💐

Thursday 11 June 2020

राबड़ी

संतो की शरण
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एक गांव में एक ठाकुर थे उनके यहां एक नौकर काम करता था.. जिसके कुटुंब में बीमारी की वजह से कोई आदमी नहीं बचा। 
केवल नौकर का लड़का रह गया। वह ठाकुर के घर काम करने लग गया.. 
रोजाना सुबह वह बछड़े चराने जाता था.. और लौटकर आता तो रोटी खा लेता था। ऐसे समय बीतता गया।

एक दिन दोपहर के समय वह बछड़े चरा कर आया तो ठकुरानी की नौकरानी ने उसे ठंडी रोटी खाने के लिए दे दी। 
उसने कहा कि थोड़ी सी छाछ या रबड़ी मिल जाए तो ठीक है।
नौकरानी ने कहा कि, जा जा तेरे लिए बनाई है रबड़ी, जा ऐसे ही खा ले नहीं तो तेरी मर्जी।
उस लड़के के मन में गुस्सा आया कि, मैं धूप में बछड़े चरा कर आया हूं, भूखा हुँ..
पर मेरे को बाजरे की सूखी रोटी दे दी.. रबड़ी मांगी तो तिरस्कार कर दिया..
वह भूखा ही वहां से चला गया। 
गांव के पास में एक शहर था.. उस शहर में संतों कि एक मंडली आई हुई थी.. वह लड़का वहां चला गया।
संतों ने उसको भोजन कराया और पूछा कि तेरे परिवार में कौन हैं। 
उसने कहा कि कोई नहीं है..
संतों ने कहा तू भी साधु बन जा.. लड़का साधु बन गया।
संतों ने ही उसके पढ़ने की व्यवस्था काशी में कर दी.. वह पढ़ने के लिए काशी चला गया वहां पढ़कर वह विद्वान हो गया। 
फिर कुछ समय बाद उसे महामंडलेश्वर महंत बन दिया गया।
महामंडलेश्वर बनने के बाद एक दिन उसको उसी शहर में आने का आमंत्रण मिला..
वह अपनी मंडली लेकर वहां आये.. 
जिनके यहाँ वह बचपन में काम करते थे, वे ठाकुर बूढ़े हो गए थे।
वह ठाकुर जी भी शहर में उनका सत्संग सुनने आए.. 
उनका सत्संग सुना और प्रार्थना की कि महाराज.. एक बार हमारी कुटिया में पधारो जिससे हमारी कुटिया पवित्र हो जाए ! 
महामंडलेश्वर जी ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया.. 
महामंडलेश्वर जी अपनी मंडली के साथ ठाकुर के घर पधारे।
भोजन के लिए पंक्ति बैठी, भोजन मंत्र का पाठ हुआ.. फिर सबने भोजन करना आरंभ किया।
महाराज के सामने तख़्त लगाया गया, और उस पर तरह-तरह के भोजन के पदार्थ रखे हुए थे।
अब ठाकुर जी महाराज के पास आए साथ में नौकर था जिसके हाथ में हलवे का पात्र था।
ठाकुर साहब प्रार्थना करने लगा कि महाराज कृपा करके थोड़ा सा हलवा मेरे हाथ से ले लो। 
महाराज को हंसी आ गई..
ठाकुर ने पूछा कि आप हँसे कैसे ?
महाराज बोले कि, मेरे को पुरानी बातें याद आ गई इसलिए हंसा।
ठाकुर साहब बोले महाराज यदि हमारे सुनने लायक बात हो तो हमें भी बताइए।
महाराज ने सब संतो से कहा कि, भाई थोड़ा ठहर जाओ बैठे रहो, ठाकुर बात पूछता है, तो बताता हूं..

महाराज ने ठाकुर से पूछा कि, आपके कुटुंब में एक नौकर का परिवार रहा करता था उस परिवार में अब कोई है क्या ?

ठाकुर बोले कि, केवल एक लड़का था.. और हमारे यहाँ उसने कई दिन बछड़े चराए.. फिर ना जाने कहाँ चला गया।

बहुत दिन हो गए फिर कभी उसको देखा नहीं।

महाराज बोले, कि मैं वही लड़का हूं। पास के शहर में संत-मंडली ठहरी हुई थी। मैं वहां चला गया।

पीछे काशी चला गया वहां पढ़ाई की और फिर महामंडलेश्वर बन गया।

यह वही आंगन है जहां आपकी नौकरानी ने मेरे को थोड़ी सी रबड़ी देने के लिए भी मना कर दिया था।

अब मैं भी वही हुँ, आंगन भी वही है.. आप भी वही हैं..

पर अब आप अपने हाथों से मोहनभोग दे रहे हैं.. कि महाराज कृपा करके थोड़ा सा मेरे हाथ से ले लो !

अगर कोई भगवान् की शरण ले ले, तो वह संतों का भी आदरणीय हो जाए..

लखपति करोड़पति बनने में सब स्वतंत्र नहीं हैं.. पर भगवान् की शरण होने में भगवान् का भक्त बनने में सब के सब स्वतंत्र हैं.. 
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और ऐसा मौका इस मनुष्य जन्म में ही है।।
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जटायु और भीष्म

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अंतिम सांस गिन रहे *जटायु* ने कहा कि मुझे पता था कि मैं *रावण* से नही *जीत* सकता लेकिन तो भी मैं *लड़ा* ..यदि मैं *नही* *लड़ता* तो आने वाली *पीढियां* मुझे *कायर* कहती

 🙏जब *रावण* ने *जटायु* के *दोनों* *पंख* काट डाले... तो *काल* आया और जैसे ही *काल* आया ... 
तो *गिद्धराज* *जटायु* ने *मौत* को *ललकार* कहा, -- 

" *खबरदार* ! ऐ *मृत्यु* ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना... मैं *मृत्यु* को *स्वीकार* तो करूँगा... लेकिन तू मुझे तब तक नहीं *छू* सकता... जब तक मैं *सीता* जी की *सुधि* प्रभु " *श्रीराम* " को नहीं सुना देता...!

 *मौत* उन्हें *छू* नहीं पा रही है... *काँप* रही है खड़ी हो कर...
 *मौत* तब तक खड़ी रही, *काँपती* रही... यही इच्छा मृत्यु का वरदान *जटायु* को मिला।

किन्तु *महाभारत* के *भीष्म* *पितामह* *छह* महीने तक बाणों की *शय्या* पर लेट करके *मौत* का *इंतजार* करते रहे... *आँखों* में *आँसू* हैं ... रो रहे हैं... *भगवान* मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं...! 
कितना *अलौकिक* है यह दृश्य ... *रामायण* मे *जटायु* भगवान की *गोद* रूपी *शय्या* पर लेटे हैं... 
प्रभु " *श्रीराम* " *रो* रहे हैं और जटायु *हँस* रहे हैं... 
वहाँ *महाभारत* में *भीष्म* *पितामह* *रो* रहे हैं और *भगवान* " *श्रीकृष्ण* " हँस रहे हैं... *भिन्नता* *प्रतीत* हो रही है कि नहीं... *?* 

अंत समय में *जटायु* को प्रभु " *श्रीराम* " की गोद की *शय्या* मिली... लेकिन *भीष्म* *पितामह* को मरते समय *बाण* की *शय्या* मिली....!
 *जटायु* अपने *कर्म* के *बल* पर अंत समय में भगवान की *गोद* रूपी *शय्या* में प्राण *त्याग* रहा है.... 

प्रभु " *श्रीराम* " की *शरण* में..... और *बाणों* पर लेटे लेटे *भीष्म* *पितामह* *रो* रहे हैं.... 
ऐसा *अंतर* क्यों?...     

ऐसा *अंतर* इसलिए है कि भरे दरबार में *भीष्म* *पितामह* ने *द्रौपदी* की इज्जत को *लुटते* हुए देखा था... *विरोध* नहीं कर पाये थे ...! 
 *दुःशासन* को ललकार देते... *दुर्योधन* को ललकार देते... लेकिन *द्रौपदी* *रोती* रही... *बिलखती* रही... *चीखती* रही... *चिल्लाती* रही... लेकिन *भीष्म* *पितामह* सिर *झुकाये* बैठे रहे... *ग़लत* *का* *विरोध* नहीं कर पाये...!

उसका *परिणाम* यह निकला कि *इच्छा* *मृत्यु* का *वरदान* पाने पर भी *बाणों* की *शय्या* मिली और .... 
 *जटायु* ने *नारी* का *सम्मान* किया... *ग़लत* *का* *विरोध* करते हुए
अपने *प्राणों* की *आहुति* दे दी... तो मरते समय भगवान " *श्रीराम* " की गोद की शय्या मिली...!

जो दूसरों के साथ *गलत* होते देखकर भी आंखें *मूंद* लेते हैं ... उनकी गति *भीष्म* जैसी होती है ... ।
जो अपना *परिणाम* जानते हुए भी...औरों के लिए *संघर्ष* करते है, उसका माहात्म्य *जटायु* जैसा *कीर्तिवान* होता है।

🙏 सदैव *गलत* का *विरोध* जरूर करना चाहिए। " *सत्य* परेशान जरूर होता है, पर *पराजित* कभी *नहीं* । 

 
🙏🌹 जय श्री हरि 🌹🙏

Wednesday 18 December 2019

NRC & CAA

गौर से पढें, क्यूँ भारत के अस्तित्व के लिए CAB और NRC आख़िरी मौका हैं 👇👇👇

📢 *लेबनान की कहानी*

70 के दशक में *लेबनान* अरब का एक ऐसा मुल्क था । जिसे *'अरब का स्वर्ग'* कहा जाता था । और इसकी राजधानी *बेरूत* को *'अरब का पेरिस'*। लेबनान एक progressive, tolerant और multi-cultural society थी, ठीक वैसे ही जैसे *भारत* है।

लेबनान में दुनिया की बेहतरीन Universities थीं । जहाँ पूरे अरब से बच्चे पढ़ने आते थे । और फिर वहीं रह जाते थे, काम करते थे, मेहनत करते थे। लेबनान की banking दुनिया की श्रेष्ठ banking व्यवस्थाओं में शुमार थी। Oil न होने के बावजूद लेबनान एक शानदार economy थी।

लेबनान का समाज कैसा था ।  इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है ।  कि 60 के दशक में बहुचर्चित हिंदी फिल्म *An Evening in Paris* दरअसल Paris में नहीं बल्कि लेबनान में shoot की गई थी।

60 के दशक के उत्तरार्ध में वहाँ *जेहादी ताकतों* ने सिर उठाना शुरू किया। 70 में जब *Jordan* में अशांति हुई , तो लेबनान ने *फिलिस्तीनी शरणार्थियों* के लिए दरवाज़े खोल दिए - _आइये, स्वागत है!_ 1980 आते-आते लेबनान की ठीक वही हालत हो गयी जो आज *सीरिया* की है।

लेबनान की *Christian आबादी* को शरणार्थी बनकर घुसे जिहादियों ने ठीक उसी तरह मारा जैसे सीरिया के ISIS ने मारा। *पूरे के पूरे शहर में पूरी Christian आबादी को क़त्ल कर दिया गया।* कोई बचाने नहीं आया।

किसी समाज का एक छोटा-सा हिस्सा भी उन्मादी जिहादी हो जाए । तो फिर शेष peace loving society का कोई महत्त्व नहीं रहता। वो irrelevant हो जाते हैं। लेबनान की कहानी ज़्यादा पुरानी नहीं सिर्फ 25-30 साल पुरानी है।

लेबनान के इतिहास से बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है। और कोई सीखे न सीखे भारत को लेबनान के इतिहास से सीखने की ज़रूरत है। *रोहिंग्याओं, बाँग्लादेशी घुसपैठियों* और *सीमान्त प्रदेशों* में पल रहे जेहादियों से सतर्क रहने की ज़रूरत है।

ऐसी ताकतों के विरूद्ध एकजुट होइये । जो जेहादियों की समर्थक हैं । और इनका समर्थन दे रही  पार्टियों , संस्थाओ, औऱ इनसे जुड़े लोगों का बहिष्कार करिये।
चुप मत बैठिये।
पढ़िए, समझिये और दूसरों को
 भी समझाइए। 

*वंदे मातरम*
जय मोदी, जय भारत 
🙏🙏🙏